Friday 11 November 2011

एक संवेदनशील रचनाकार की चिंताएं


सुशांत सुप्रिय हमारे समय के उन गिने-चुने लेखकों में से एक हैं जो महानगरीय वातावरण में रहने के बावजूद भी अपनी संवेदना तथा भावना को बचाए रखने में सफल रहें हैं। उनकी कहानियों में इस तथ्य को भली-भांति परखा जा सकता है। पेशे से सुशांत जिस स्थान पर बैठे हैं वहां से एक समृद्ध भारत और निर्धन भारत के बीच के फर्क को साफ-साफ देखा जा सकता है। लोकसभा जैसी संस्था में कार्यरत सुशांत का कहानीकार जब जन-गण-मन की वकालत करता और भ्रष्ट सरकारी तंत्र को नंगा करके उसके घिनौने चरित्र को पाठकों के समक्ष लाता है तो वह प्रामाणिक होने के साथ-साथ उम्दा रचनाओं को जन्म देता है।
सुशांत सुप्रिय के सद्य प्रकाशित कहानी-संग्रह ‘हत्यारे’ में 35 कहानियां संकलित हैं। ये कहानियां समकालीन सदी की ज्वलंत समस्याओं से न केवल मुठभेड करती हैं अपितु उनको कुचल कर आदर्श भी स्थापित करती हैं। लगभग सभी कहानियों में लेखक परंपरागत मूल्यों और आदर्शों की पुनर्स्थापना के लिए प्रयासरत है। इसे एक युवा लेखक का विवेक कहना चाहिए कि वह एक ऐसे समय में ‘आदर्शोन्मुख यथार्थवाद’ की बात करता है जब यथार्थवाद और अतियथार्थवाद का शोर हमारे यहां प्रमुखता में है। लीक से हटकर लिखी इन कहानियों में किसी प्रकार का छद्म देखने को नहीं मिलता बल्कि एक संवेदनशील रचनाकार की चिंताएं इनमें व्यक्त हुई हैं। स्वयं लेखक अपनी बात में इसे स्पष्ट करता है। सुशांत के लिए लेखन एक तडप है, धुन है, जुनून है। कुछ सामाजिक यथार्थ है। कुछ कल्पना की उडान है। कुछ व्यक्तिगत अनुभव हैं। कुछ आत्मीय सामाजिक सरोकार हैं जिन्हें लेखक द्वारा इन कहानियों में संजोया गया है।
‘हत्यारे’ कहानी समाज में दहशत और भय के माहौल को व्यक्त करती है। ‘बँटवारा’ में सांप्रदायिक उन्माद की भेंट चढी एक किन्नर की लाश के माध्यम से दंगाईयों के चरित्र का नंगापन उजागर हुआ है। मानवीय संवेदना के स्याह-सफेद पहलुओं का रेखांकन ‘अपना शहर’, ‘राम नाम सत्य है’, ‘प्यार’, ‘एहसानमंद’ आदि कहानियों में बडी खूबसूरती से हुआ है। शिक्षा जगत की विकृतियां ‘मुलाकात’ कहानी में अभिव्यक्त हुई हैं। ‘मिसफिट’ में व्यवस्था के प्रति विद्रोह प्रकट हुआ है। ‘गलती’ तथा ‘प्रवासी कौवे की कथा’ कहानी नस्लभेद की समस्या को सामने लाती है।
सुशांत की इन कहानियों में जो यूटोपिया उभर कर हमारे समक्ष उपस्थित हुआ है, वह कपोल कल्पित न होकर समय और समाज के लिए आदर्शों और मूल्यों की प्रतिस्थापना का ईमानदार प्रयास है। लेखक पीढीगत वैचारिक अंतराल को अभिव्यक्त करते हुए इस युग की मूल्यहीनता को परंपरागत जीवनादर्शों के सामने घुटने टेकते हुए देखना चाहता है।
सुशांत की कहानियों का आकार संक्षिप्त है। कुछ आलोचकों का मत है कि उन्हें लंबी कहानियां भी लिखनी चाहिए। परंतु मेरा मत है कि छोटे कथ्य में महत्वपूर्ण संदेश बयान करने का जो कौशल सुशांत के पास है, वह उनकी विशिष्टता है। ‘बँटवारा’, ‘गलती’, ‘प्रवासी कौवे की कथा’ आदि कहानियां अपने छोटे कथ्य में बडी बात कहने वाली कहानियां हैं। इन कहानियों में व्यंग्य और कटाक्ष का अंदाज तीखा, पैना और प्रभावी है। भाषायी संस्कार और शैल्पिक तहजीब के कथाकार सुशांत एक संभावनाशील रचनाकार के रूप में बधाई के पात्र हैं, जिनसे भविष्य में कुछ और अच्छी कहानियों की उम्मीद की जा सकती है।
लेखक- सुशांत सुप्रिय
पुस्तक- हत्यारे
प्रकाशक- नेशनल पब्लिशिंग हाउस, 337, चौडा रास्ता, जयपुर-302 003
मूल्य- 225 रुपये
पृष्ठ संख्या- 132
  कृष्ण कुमार अग्रवाल

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