Tuesday 4 October 2011

विविधवर्णी कथाकारःमुरलीधर वैष्णव


श्री मुरलीधर वैष्णव जोधपुर में जिला उपभोक्ता न्यायालय में न्यायाधीश हैं। वैष्णव जी ने अपने लम्बे न्यायाधीशीय अनुभव में सरकार, प्रशासन, पुलिस व आम जनता की मानसिकता व विचार-व्यवहार को करीब से जांचा-परखा है। उन्होंने अपनी कहानियों में निर्भीकता व विवेकपूर्ण तरीके से इन सभी वर्गों की अपनी-अपनी कमजोरियों को उघाड़ा है। वैष्णव जी एक कत्र्तव्यनिष्ठ, ईमानदार व विवेकवान न्यायाधीश हैं। उनके भावुक हृदय ने अपनी संवेदनाओं को साहित्य की अनेक विधाओं में अभिव्यक्त किया है। कहानी के साथ-साथ लघुकथा व बालसाहित्य में भी उनका स्तरीय लेखन है। उनका एक लघुकथा व दो बालकथा संग्रह प्रकाशनाधीन हैं।

लेखक-मुरलीधर वैष्णव, प्रकाशक-श्री करणी प्रकाशन, सोजत नगर (राज.)
 लगातार तबादलों के चलते वैष्णव जी को विभिन्न जीवन शैलीयों व संस्कृतियों को करीब से देखने का अवसर मिला। ‘मांद से ड्राइंग रुम तक’ कहानी में जहां नगरीय संस्कृति की संवेदनहीनता चित्रित हुई है वहीं ‘तीसरा वज्रपात’ में आदिवासी जीवन की विड़म्बनाओं को दर्शाया गया है। वैष्णव जी की कहानियों का दृष्टिकोण आदर्शोन्मुख यथार्थवाद है। यहां न तो कोरा आदर्शवाद ही है और न ही नग्न यथार्थवाद। उनका प्रयत्न मानव जाति को संभावित खतरों के प्रति सजग करने का है न कि निराश व हतोत्साहित करना। इन कहानियों में वर्णित विषय लेखक के देखे-भोगे हैं। स्वयं लेखक के शब्दों में ‘ये सच्चे अनुभूत किस्से अच्छी खासी भीतरी हलचल के बाद ही पीड़ा के स्वर के रूप में उभरे हैं।’ 

संग्रह की प्रथम कहानी ‘मांद से ड्राइंग रुम तक’ जंगलों की अंधाधुंध कटाई के फलस्वरूप वन्य जीवन के असंतुलन को दर्शाती है। पशु की इंसानियत और इंसान का पशुत्व इस कहानी में व्यक्त हुआ है। कहानी वन्य जीवों के अधिकारों को उठाती है। हम मानवाधिकारों की बात करते हैं, स्त्री-दलित-आदिवासियों के अधिकारों की बात करते हैं परंतु सभ्यता के विकास क्रम में मानव के साथी रहे पशु-पक्षियों पर मानव की बर्बरता पर खामोश क्यों हैं? कहानी एक प्रश्न छोड़ जाती है। ‘तीसरा वज्रपात’ कहानी आदिवासी जन-जीवन व लोक-संस्कृति की झलक लिए है। आदिवासी स्त्री चरित्र थंवरी के माध्यम से लेखक आदिवासी स्त्री जीवन की विड़म्बनाओं को रेखांकित करने में सफल रहा है।

असामाजिक तत्व किस प्रकार सांप्रदायिक उन्माद पैदा करते हैं और धर्मांध समाज कैसे इन असामाजिक तत्वों के नापाक मंसूबों को समझ पाने में असमर्थ है। ‘आंखें कहां है’ शीर्षक कहानी में लेखक इसी ओर संकेत करता है कि  विवेक व सहनशीलता से सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखा जा सकता है। ‘हर पल जीना है’ आदर्शवादी अध्यापक आलोक की कहानी है। जो गांव में शिक्षा का आलोक फैलाता है, हरिजनों व मुस्लिमों के विवाद को सुलझाकर भाईचारे से रहने की प्रोरणा देता है। ‘अन्तिम झूठ’ शीर्षक कहानी में शीला एक साहसी, बुद्धिमान व चरित्रवान महिला है जो अपनी सूझ-बूझ से न केवल अपने पति के हत्यारों को सजा दिलवाती है अपितु अपने बेटे को एक बड़ा आदमी बनाती है। पुलिस व अपराधियों की सांठ-गांठ यहां खुलती है। शीला का अंतिम बयान समूची प्रणाली पर गहरी चोट करता है।

‘वापसी’ कहानी आदिवासी क्षेत्रों में चल रही धर्मांतरण की गतिविधियों पर प्रकाश डालती है। आदिवासी क्षेत्रों में ईसाई मिशनरीयों द्वारा सेवा व दया की आड़ में धर्म परिवर्तन का जो षड़यन्त्र चल रहा है, उसका सीधा प्रसारण इस कहानी में देखने को मिलता है। कहानी चर्च के साम्राज्यवाद को उघाड़ती है, उसका उद्देश्य भोले-भाले आदिवासियों का धर्मांतरण कर उसे अपनी जमीन व संस्कृति से उखाड़ना है। धर्म परिवर्तन के कारणों का भी रेखांकन यहां हुआ है हिन्दू धर्म की घोर उपेक्षा, शोषण व निर्धनता क कारण ही आदिवासी धर्म परिवर्तन को मजबूर होते हैं। लेखक का दृष्टिकोण निष्पक्ष एवं तटस्थ है। वे किसी धारा या विचारधारा की रौ में बहकर नहीं बोलते अपितु यथार्थ के सभी पहलुओं को परिदृश्य में लाते हैं।

‘विरासत’ शीर्षक कहानी में एक सेवानिवृत्त अधिकारी की दारुण स्थिति का मार्मिक चित्रण हुआ है। लम्बी कानूनी प्रक्रिया और वकीलों की भ्रष्ट नीतियों के कारण आम आदमी की कमर टूट जाती है और अन्ततः उसे न्याय के नाम पर अन्याय ही मिलता है। कानून के अंधेपन, बहरेपन और लूलेपन को दर्शाती है यह कहानी। ‘मै अकेला नहीं’ में नपुंसक प्रशासनिक व्यवस्था के खिलाफ लड़ते कत्र्तव्यवान व ईमानदार अधिकारी की पीड़ा व संघर्ष को प्रस्तुत किया गया है। मजिस्ट्रेट कमलनाथ के दक्षतापूर्ण कार्य से पुलिस व अदालत की ऊपरी कमाई बन्द हो जाती है, वकीलों का काम-काज ठप्प हो जाता है। उसे संविधान में आस्था का पुरस्कार उच्चाधिकारियों की नाराजगी व डांट-डपट के रूप में प्राप्त होता है। परंतु अपनी जिम्मेवारियों के प्रति समर्पित कमलनाथ तमाम बाधाओं के बावजूद समझौता नहीं करता और अन्ततः विजयी होता है।

संग्रह में संकलित सभी कहानियां ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’, ‘सरिता’, ‘मुक्ता’ तथा ‘राजस्थान पत्रिका’ जैसी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। निसंदेह ये कहानियां पाठक को अन्याय के प्रति आक्रोशित करती हैं, पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरुक करती हैं और संवेदनहीनता से मुक्त कर मानवीय संबंधों की गरिमा को पहचानने की परख देती हैं।

- कृष्ण कुमार अग्रवाल
शोधार्थी, हिन्दी विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र
मो. 090342-86388

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